भारतीय न्याय संहिता,
भारतीय न्यायिक प्रणाली का मौलिक स्तंभ है जिसे भारत के न्यायिक व्यवस्था की पीठस्थापना के रूप में माना जाता है। यह एक संविधान द्वारा स्थापित और न्यायिक प्रक्रिया को संचालित करने वाली विशेष कानूनी प्रणाली है जो भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।इतिहास और विकासभारतीय न्याय संहिता का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह पुराने धर्मशास्त्रों, विशेषतः मानव धर्मशास्त्र, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, गौतम धर्मसूत्र आदि से आश्रित है। इन स्मृतियों में न्यायिक व्यवस्था के लिए विधिमान व्यवस्था, दंडनीति, विवाद सुलझाने के तरीके, दण्ड प्रणाली आदि के निर्देश दिए गए हैं।
आधुनिक भारतीय न्याय संहिता का विकास ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ, जब वहाँ के न्यायिक प्रणाली को अंग्रेजी कानूनी प्रणाली के अनुसार सुधारा गया। 1860 में भारतीय न्याय संहिता को पारित किया गया, जिसमें विभिन्न कानूनी प्रावधान और न्यायिक प्रक्रियाओं का संचालन करने के नियम स्थापित किए गए। स्थानीय न्यायिक प्रणालियों के अनुसार, यह एक व्यावसायिक न्यायिक प्रणाली को अधिष्ठित करता है जो भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में समान रूप से लागू होती है।संरचना और प्रावधानभारतीय न्याय संहिता का मौलिक उद्देश्य समाज में न्याय प्रदान करना है। इसकी संरचना में विभिन्न अधिकारी, न्यायाधीश, और कार्यपालिका अधिकारियों का योगदान होता है। इसका उद्देश्य न्यायिक निर्णय को न्यायसंगतता, तात्पर्यवादिता, और सम्विद्धानपरकता के साथ संचालित करना है।महत्वपूर्ण प्रावधानभारतीय न्याय संहिता में कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जैसे कि अधिकारी की नियुक्ति, न्यायिक अधिकार, न्यायाधीशों के लिए मानदंड, अपील प्रक्रिया, विवाद सुलझाने के उपाय, दंडनीति, अदालतों के प्रक्रियात्मक नियम आदि। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और न्यायसंगत हो।समस्याएँ और सुधारहालांकि, भारतीय न्याय संहिता का अमल व्यवस्थापक प्रक्रियाओं, विवादों के लंबित होने, अधिकतम समय लेने और व्यापक अधिकृति प्राप्ति की समस्याओं के सामने भी खड़ा है। यहां तक कि न्यायिक लंबितता और कार्यदक्षता में वृद्धि के लिए समुचित सुधार आवश्यक हो सकते हैं।संक्षेपभारतीय न्याय संहिता एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रणाली है जो भारतीय समाज के न्याय और समानता के लिए महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से न्याय के प्रावधानों का पालन किया जाता हैभारतीय न्याय संहिता, भारतीय न्यायिक प्रणाली का मौलिक स्तंभ है जिसे भारत के न्यायिक व्यवस्था की पीठस्थापना के रूप में माना जाता है। यह एक संविधान द्वारा स्थापित और न्यायिक प्रक्रिया को संचालित करने वाली विशेष कानूनी प्रणाली है जो भारतीय न्यायिक प्रणाली के लिए मार्गदर्शन प्रदान करती है।इतिहास और विकासभारतीय न्याय संहिता का इतिहास बहुत प्राचीन है। यह पुराने धर्मशास्त्रों, विशेषतः मानव धर्मशास्त्र, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति, गौतम धर्मसूत्र आदि से आश्रित है। इन स्मृतियों में न्यायिक व्यवस्था के लिए विधिमान व्यवस्था, दंडनीति, विवाद सुलझाने के तरीके, दण्ड प्रणाली आदि के निर्देश दिए गए हैं।आधुनिक भारतीय न्याय संहिता का विकास ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ, जब वहाँ के न्यायिक प्रणाली को अंग्रेजी कानूनी प्रणाली के अनुसार सुधारा गया। 1860 में भारतीय न्याय संहिता को पारित किया गया, जिसमें विभिन्न कानूनी प्रावधान और न्यायिक प्रक्रियाओं का संचालन करने के नियम स्थापित किए गए। स्थानीय न्यायिक प्रणालियों के अनुसार, यह एक व्यावसायिक न्यायिक प्रणाली को अधिष्ठित करता है जो भारत के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में समान रूप से लागू होती है।संरचना और प्रावधानभारतीय न्याय संहिता का मौलिक उद्देश्य समाज में न्याय प्रदान करना है। इसकी संरचना में विभिन्न अधिकारी, न्यायाधीश, और कार्यपालिका अधिकारियों का योगदान होता है। इसका उद्देश्य न्यायिक निर्णय को न्यायसंगतता, तात्पर्यवादिता, और सम्विद्धानपरकता के साथ संचालित करना है।महत्वपूर्ण प्रावधानभारतीय न्याय संहिता में कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं जैसे कि अधिकारी की नियुक्ति, न्यायिक अधिकार, न्यायाधीशों के लिए मानदंड, अपील प्रक्रिया, विवाद सुलझाने के उपाय, दंडनीति, अदालतों के प्रक्रियात्मक नियम आदि। ये प्रावधान सुनिश्चित करते हैं कि न्यायिक प्रक्रिया निष्पक्ष, पारदर्शी और न्यायसंगत हो।समस्याएँ और सुधारहालांकि, भारतीय न्याय संहिता का अमल व्यवस्थापक प्रक्रियाओं, विवादों के लंबित होने, अधिकतम समय लेने और व्यापक अधिकृति प्राप्ति की समस्याओं के सामने भी खड़ा है। यहां तक कि न्यायिक लंबितता और कार्यदक्षता में वृद्धि के लिए समुचित सुधार आवश्यक हो सकते हैं।संक्षेपभारतीय न्याय संहिता एक महत्वपूर्ण न्यायिक प्रणाली है जो भारतीय समाज के न्याय और समानता के लिए महत्वपूर्ण है। इसके माध्यम से न्याय के प्रावधानों का पालन किया जाता है